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यात्री हूँ मैं जग में प्रभुजी Yaatree Hung Main Jag Mey Prabhujee
सोचा था मैं यह जग मेरा, खेस कुटुम्ब सब है प्यारा,धोखा सब! कोई न सहारा, व्यर्थ ही व्यर्थ है सारा धन दौलत सब मान व इज्जत, यहीं रहेगा जल जाएगा,यह जगत! पाप से जो भरा, श्राप ही श्राप है सारा जान गया मैं उस दिन प्रभु जी बदला जीवन लहू से मेराबड़ा आनन्द! तूने कहा…